मूलत: जिला कांगड़ा के जसूर के रहने वाले पंडित बट्टू का जीवन शिमला में ही बीता है। 70 सात की संगीत साधना के बाद उन्हें यह सर्वोच्च सम्मान पद्यश्री के रूप में मिला है। पद्मश्री पंडित सोम दत्त बट्टू राजधानी शिमला में कई दशकों तक शास्त्रीय संगीत और लोक गीत के क्षेत्र में गुरु-शिष्य की परंपरा के समवाहक रहे हैं। आज राष्ट्रीय स्तर का सम्मान पाने पर उन्होंने न केवल शिमला, बल्कि पूरे हिमाचल का मान बढ़ाया है। मूलत: जिला कांगड़ा के जसूर के रहने वाले पंडित बट्टू का जीवन शिमला में ही बीता है। 70 सात की संगीत साधना के बाद उन्हें यह सर्वोच्च सम्मान पद्यश्री के रूप में मिला है। उनसे बात करने पर पंडित बट्टू ने बेबाकी से हर बात साझा की। महज छह साल की उम्र में पिता पंडित राम लाल बट्टू से उन्होंने संगीत सीखना शुरू किया, आज 87 की उम्र में भी वह शास्त्रीय संगीत और लोक गीत को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं। ग्वालियर घराने के पंडित कुंज लाल शर्मा, पंजाब घराने के प्रो. कर्म सिंह चक्रवर्ती और पटियाला घराने के कुंदन लाल शर्मा से शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। इसी परंपरा को उन्होंने अपने जीवन में भी आगे बढ़ाया। उनके न जाने कितने ही शिष्य आज शास्त्रीय संगीत और लोक गीत के क्षेत्र में नाम कमा चुके है।
प्रारंभिक जीवन
संगीतकारों के परिवार में जन्मे सोम दत्त बट्टू (जन्म 11 अप्रैल 1938) शिमला स्थित पटियाला घराने के हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक हैं । वह हिमाचल गौरव के नागरिक सम्मान के विजेता थे। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद नई दिल्ली में हिंदुस्तानी संगीत के लिए पैनल समिति के सदस्य भी हैं। बट्टू को उनके पिता राम लाल बट्टू, जो शाम चौरसिया घराने के अनुयायी थे , ने हिंदुस्तानी गायन में दीक्षा दी थी। उन्होंने विष्णु दिगंबर पलुस्कर के शिष्य कुंज लाल शर्मा से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने आशिक अली खान के प्रसिद्ध शिष्य कुन्दन लाल शर्मा से पटियाला घराने की गायकी (गायन शैली) की तकनीक भी सीखी।
इनमें खास पहाड़ी लोग गायकी के अंदाज वाले कृष्ण लाल सहगल, वर्तमान में एचपीयू के संगीत विभागाध्यक्ष प्रो. जीत राम जैसे कई नाम हैं। पंडित बट्टू ने शिमला के संजौली, कोटशेरा, फागली कॉलेजों में सालों संगीत शिक्षक के रूप में सेवाएं दीं। उनके घर पर हमेशा गीत संगीत का माहौल बना रहता है। पहले नाभा में फिर ब्योलिया के होरी में जब भी वह घर पर रहते हैं, उनके शिष्य मौजूद रहते हैं। आज तक उन्होंने संगीत की सेवा के इस 70 साल के सफर में किसी से एक पैसा फीस के रूप में नहीं लिया। पंडित बटटू ने बताया कि उन्होंने संगीत पर किताबें भी लिखी हैं, रेडियो पर कई राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गायन के कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं। हाल ही में पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला ने उनकी शास्त्रीय संगीत पर लिखी पुस्तक को प्रकाशित किया है। उम्र के इस पड़ाव में भी वह संगीत की सेवा जारी रखे हुए हैं। जहां सम्मान से बुलाया जाता है, जाते हैं। रियाज जारी है।
लोक संगीत में किए जा रहे प्रयोग, पारंपरिकता से समझौते से आहतबट्टू ने लोक गीतों में पारंपरिकता से किए जा रहे समझौते, सुरों, गीतों को लिखने में आए बदलाव और इस पर हावी हो रहे बाजारीकरण को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पारंपरिक लोगगीत भी पहचान देते हैं। सच्ची साधना, लग्न और अपनी संस्कृति से प्यार है तो वही पारंपरिक अंदाज में लिखे, गाए गए मधुर गीत भी आप को सफलता के शिखर तक पहुंचा सकते है। नए लोक गायकों को उन्होंने संदेश दिया कि सच्ची लग्न से संगीत की साधना करें, इसके पारंपरिक गुण को बनाए रखें, सफलता अपने आप मिलेगी।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज ने वर्ष 1992 में ‘मैन एंड म्यूजिक इन इंडिया’ प्रकाशित किया; इस कार्य में बट्टू सहित कुछ शोध पत्र प्रकाशित हुए।
पुरस्कार
- पंजाबी अकादमी नई दिल्ली, दिल्ली सरकार द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट और परम सभ्यचार सम्मान पुरस्कार।
- पंजाब संगीत रतन पुरस्कार।
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार।
- पद्म श्री पुरस्कार।
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कला को बढ़ावा देने के क्षेत्र में विशिष्ट सेवाएं प्रदान करने के लिए भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा अनुमोदित पद्म श्री पुरस्कार के लिए चुने जाने पर सोम दत्त बट्टू को बधाई दी। शिमला स्थित गायक सोम दत्त बट्टू को शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने में उनके असाधारण योगदान के लिए पदम श्री पुरस्कार मिला ।